इतिहास का अध्ययन करें, यह सच्चाई स्वतः सामने आजाएगी कि ज़ालिम कौन है और मज़लूम कौन:मौलाना अरशद मदनी
नई दिल्ली । फिलिस्तीन और इज़राइल के बीच जारी युद्ध पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जमीअत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि इसे युद्ध का नाम नहीं दिया जा सकता, क्योंकि युद्ध तो वह होता है जो बराबर के लोगों में हो, यहां तो एक वह है जो दुनिया के आधुनिक और घातक हथियारों से लैस है और जिसे दुनिया के कई शक्तिशाली देशों का खुला समर्थन प्राप्त है, और दूसरी ओर वह है जो असहाय और निहत्था है, परन्तु अगर यह कहा जाए तो उचित होगा कि यह अत्याचारी और उत्पीड़ित के बीच एक युद्ध है। उन्होंने कहा कि दुनिया जानती है कि इज़राइल हड़पने वाला है और उसने फिलिस्तीन की भूमि पर अवैध रूप से बलपूर्वक कब्जा कर रखा है जिसे आज़ाद कराने के लिए ही फिलिस्तीन के लोग लम्बे समय से संघर्ष कर रहे हैं। हजरत मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि अपने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों को स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है आतंकवादी नहीं। इस सम्बंध में उन्होंने महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का हवाला दिया और कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक ओर अहिंसा के पक्षधर महात्मा गांधी थे जो अंग्रेज़ों से देश को आज़ाद कराने के लिए शांतिपूर्ण आन्दोलन चलाने के समर्थक थे दूसरी ओर नेताजी थे जिनका मानना था कि शांतिपूर्ण आन्दोलन से अंग्रेज़ यहां से जाने वाले नहीं हैं बल्कि इसके लिए एक हिंसक आन्दोलन की जरूरत है और इसी लिए उन्होंने यह प्रसिद्ध नारा दिया था कि ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।’’ अपनी जगह महात्मा गांधी का पक्ष सही था दूसरी ओर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पक्ष को भी गलत नहीं टहराया जा सकता क्योंकि वह एक उत्साही स्वतंत्रता सेनानी थे और किसी भी कीमत पर अपने देश को स्वतंत्र देखना चाहते थे। हजरत मौलाना मदनी ने तालिबान का भी उदाहरण दिया और कहा कि एक समय में तालिबान को भी आतंकवादी कहा गया मगर अब जबकि वो अफ्गानिस्तान में सत्ता में आ चुके हैं यह पैमाना बदल चुका है। अब उन्हें कोई आतंकवादी नहीं कहता, उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि केवल इसलिए कि अपने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले मुसलमान हैं, उन्हें आतंकवादी करार देना न्याय की बात नहीं है। हजरत मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि आतंकवादी वह है जो हर जगह आतंक फैलाए परन्तु यहां मामला इसके विपरीत है। हमास के लोगों ने कभी किसी अन्य देश में न तो आतंक फैलाया और न ही वो किसी अन्य देश की सुरक्षा और एकता के लिए खतरा बनते हैं, बल्कि उनकी सभी गतिविधियां फिलिस्तीन तक सीमित हैं। इसके संसाधन सीमित हैं, यहां तक कि कभी कभी उनके पास खाने-पीने की वस्तुएं भी नहीं होतीं, फिर भी अपने देश की स्वतंत्रता के लिए वह लगातार संघर्ष कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने जिस साहस का प्रदर्शन किया, यहां तक कि घर में घुसकर अपने ताबड़तोड़ हमलों से दूसरों की भूमि हड़प जाने वाले शाक्तिशाली इज़राइल को नाकों चने चबवा दिए, वह एक असाधारण कार्य था, भले ही ऐसा कर के उन्होंने अपनी जान जोखिम में डाल दी लेकिन शायद वह समझते हैं कि इस प्रकार के बलिदान के बिना देश को अत्याचारियों के चंगुल से आज़ाद नहीं कराया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि इज़राइल पिछले कई दशकों से असहाय लोगों का खून बहा रहा है यहां तक कि महिलाओं और बच्चों को भी बहुत क्रूरता से निशाना बनाता रहा है, परन्तु दुनिया इसे आतंकवादी कहने का साहस नहीं कर पा रही है शायद इसलिए कि उसे अमरीका का समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर उन लोगों को बिना सोचे-समझे पश्चिमी मीडिया की कॉपी करके आतंकवादी कहा और लिखा जा रहा है जो असहाय और विवश होकर अपने देश को आज़ाद कराने के लिए जान की बाज़ी लगा रहे हैं। मौलाना मदनी ने अंत में लोगों से कहा कि वो अखबारों और टीवी चैनलों द्वारा फैलाए जाने वाले दुष्प्रचार से प्रभावित होकर फिलिस्तीन के लोगों के बारे में कोई अंतिम राय बनाने से पहले इस क्षेत्र के इतिहास का अध्ययन करें, इसके बाद यह सच्चाई स्वतः खुल कर सामने आ जाएगी कि अत्याचारी कौन है और किस उत्पीड़ित कौन? दूसरे की भूमि पर अवैध क़ब्ज़ा करने वाले या भूखे-प्यासे बेघर लोगों को दया खाकर आश्रय देने वाले?
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