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लोकसभा चुनावों में जनता ने संप्रदायवाद और नफरत की राजनीति को नकार दिया, लेकिन संप्रदायवाद के मन में से जहर नहीं निकला।



मॉब लिंचिंग के खिलाफ सिर्फ निंदा काफी नहीं बल्कि कड़ा कानून लाया जाए। अब समय आ गया है कि धर्मनिरपेक्ष दल क़ानून बनाने के लिए संसद में आवाज़ उठाएं।

हालांकि वर्तमान लोकसभा चुनाव में देश के अधिकतर लोगों ने सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति को खारिज कर दिया है मगर इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों से संप्रदायवादियों ने लोगों के दिल-ओ-दिमाग में नफरत का जो ज़हर भरा है वो पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। छत्तीसगढ़ और अलीगढ़ की यह घटनाएं इसका प्रमाण हैं।

नई दिल्ली, 22 जून 2024

अध्यक्ष जमीयत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने छत्तीसगढ़ और अलीगढ़ में हुई माॅबलंचिंग की घटनाओं पर गहरा दुख और सख्त गुस्सा प्रकट करते हुए कहा कि हालांकि वर्तमान लोकसभा चुनाव में देश के अधिकतर लोगों ने सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति को खारिज कर दिया है मगर इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों से संप्रदायवादियों ने लोगों के दिल-ओ-दिमाग में नफरत का जो ज़हर भरा है वो पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। छत्तीसगढ़ और अलीगढ़ की यह घटनाएं इसका प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि एक बार फिर बदमाशों ने दरिंदगी और क्रूरता का प्रदर्शन करके मानवता के दामन को दागदार कर दिया है। मौलाना मदनी ने कहा कि सुप्रीमकोर्ट के कड़े निर्देश के बावजूद इस प्रकार की दुखद घटनाओं का सिलसिला रुक नहीं रहा है। जबकि 17 जुलाई 2018 को इस प्रकार की घटनाओं पर क्रोध व्यक्त करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि कोई व्यक्ति कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता। अदालत ने इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए केंद्र को अलग से कानून बनाने का निर्देश दिया था। अब अगर इसके बाद भी इस प्रकार की अमानवीय घटनाएं हो रही हैं तो इसका साफ मतलब है कि जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उन्हें कानून का कोई भय नहीं है। उन्हें यह भी विश्वास है कि अगर पकड़े भी गए तो उनका कुछ नहीं होने वाला क्योंकि सुप्रीमकोर्ट के निर्देश के बाद भी संसद में अलग से कोई कानून नहीं लाया गया। कुछ राज्यों को छोड़कर किसी ने भी भीड़ द्वारा हिंसा के खिलाफ क़ानून नहीं बनाया।

उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के निकट आरंग नामी स्थान पर बदमाशों के एक समूह ने पशुओं से लदे एक ट्रक को रोक लिया और ड्राईवर समेत अन्य दो युवकों को इतना पीटा कि उन्होंने दम तोड़ दिया। उनका सम्बंध उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और शामली ज़िलों से है। उनमें से एक की घटना स्थल पर मृत्यु हो गई थी जबकि अन्य ने अस्पताल पहुंचते ही दम तोड़ दिया था। उनके नाम चांद मियां और गुड्डू खान हैं। जबकि तीसरे युवक सद्दाम ख़ान की भी बाद में उपचार के दौरान मृत्यु हो गई।

मौलाना मदनी ने कहा कि भीड़ द्वारा हिंसा सामाजिक नहीं, एक राजनीतिक समस्या है और इसे राजनीतिक रूप से ही हल किया जा सकता है। इसलिए अब समय आगया है कि स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले दल इसके खिलाफ खुल कर मैदान में आएं और भीड़ द्वारा हिंसा के खिलाफ कानून बनाने के लिए सरकार पर दबाव डालें। उन्होंने यह भी कहा कि ताज़ा घटना से इस बात की पुष्टि हो गई कि भीड़ द्वारा हिंसा को रोकने के लिए न तो केंद्र गंभीर है और न ही राज्य। बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में इसके खिलाफ पूरी ताक़त के साथ धर्मनिरपेक्ष दलों को आवाज़ उठानी चाहीए, आखिर इस तरह कब तक मुट्ठी भर लोग कानून को हाथ में लेकर एक विशेष वर्ग को अपनी क्रूरता का शिकार बनाते रहेंगे? उन्होंने आगे कहा कि अखबारी रिपोर्टों के अनुसार ट्रक पर भैंसें लदी हुई थीं। जबकि भैंसों की खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं है, फिर सांप्रदायिक तत्वों ने ऐसा क्यों किया? इसका जवाब बहुत आसान है कि धर्म और नफरत के आधार पर ऐसा किया। मौलाना मदनी ने बकरईद के अवसर पर उड़ीसा के बालासोर में होने वाली घटना पर भी गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश भर में सांप्रदायिक तत्वों का मनोबल ऊंचा है, क्योंकि उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई नहीं होती। मुसलमानों के खिलाफ यह सब कुछ योजनाबद्ध तरीक़े से हो रहा है। ऐसा करने वालों की गर्दनों पर कानून के हाथ नहीं पहुंच पाते। एक ओर तो केवल शक के आधार पर घरों पर बुलडोज़र चलवा दिया जाता है वहीं दूसरी ओर मानव जीवन से खेलने वाले आज़ाद घूम रहे हैं। आज के नए भारत की यह एक सच्ची और भयानक तस्वीर है। इन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की घटना में मेरी सूचना के अनुसार अब तक किसी गिरफ्तारी का न होना यह बताता है कि कानून लागू करने वालों के लिए मुसलमानों के जान का कोई मूल्य नहीं रह गया है, इसलिए अब समय आगया है कि स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टीयां इस बर्बरता और क्रूरता के खिलाफ न केवल संसद में आवाज़ उठाएं बल्कि कड़ा कानून लाने के लिए सरकार पर दबाव डालें। जमीयत उलमा-ए-हिंद यह मांग करती है कि ऐसे लोगों को अदालत से सख़्त से सख़्त सजा मिलनी चाहिए ताकि दूसरे लोग इससे कुछ सबक़ सीख सकें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हत्याओं का यह सिलसिला इसी प्रकार से देश भर में चलता रहेगा।

 
 
 

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> MAULANA SYED ARSHAD MADANI

Arshad Madani is the son of Maulana Syed Hussain Ahmad Madani, who was the former President, Jamiat Ulama-e-Hind, and Prisoner of Malta. He was also Head of Teachers and Professor of Hadees in Darul Uloom, Deoband, Uttar Pradesh, India.

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